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नार्निया की कहानियाँ आस्लान का गीत

सी.एस.लुइस

प्रकाशक : हार्परकॉलिंस पब्लिशर्स इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6414
आईएसबीएन :978-81-7223-737

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नार्निया....जहाँ जानवर बोल पड़े हैं...जहाँ एक चुड़ैल घात लगाए बैठी है...जहाँ एक नई दुनिया बनने वाली है......

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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

नार्निया......जहाँ जानवर बोल पड़े हैं........जहाँ एक चुड़ैल घात लगाए बैठी है.....जहाँ एक नई दुनिया बनने वाली है।
पॉली और डिगोरी एक ऐसी जगह जा गिरते हैं जहाँ उनके पल्ले पड़ती है एक दुष्ट जादूगरनी जो सारी दुनिया पर राज करना चाहती है।

फिर, महान शेर आस्लान का गीत एक नए देश का ताना-बाना बुनता है। एक ऐसा देश जो नार्निया के नाम से जाना जाएगा। और नार्निया में कुछ हो सकता है.....

आस्लान का गीत


पॉली और डिगोरी पुराने और ऊँचे घर की बरसाती छान मारते हैं। उस खाली घर में उन्हें क्या मिलेगा ? क्या उस घर में भूत होंगे ? शायद वे खतरनाक मुजरिमों का गैंग ही ढूँढ निकाले ! कुछ भी हो, कोई न कोई रहस्य तो है।

थोड़ी मायूसी तो होती है जब इन सब की जगह सिर्फ डिगोरी के अंकल का गुप्त कमरा ही मिलता है। लेकिन जब एक एक्सपेरिमेंट करने के लिए अंकल पॉली को इस दुनिया से ही गायब करवा देते हैं, तो वे पिटी हुई गर्मियाँ बच्चों के लिए एक अजब रोमांच में बदल जाती हैं।

नार्निया की कहानियाँ का यह जोश भरा पहला किस्सा है।

गलत दरवाज़ा


यह किस्सा बहुत पुराना है। तुम्हारे दादा के बचपन के ज़माने का। इस कहानी को जानना बहुत ज़रूरी है क्योंकि इसमें बात तब की है जब हमारी दुनिया और नार्निया की दुनिया के बीच आना जाना शुरू हुआ।

यह उस ज़माने की ही बात है जब शर्लक होम्स बेकर स्ट्रीट में रहते थे और बास्ताबल्स लेविशैम रोड पर खज़ाने खोज रहे थे।
अगर तुम उस समय के लड़के होते तो तुम्हे गले में सख्त ईटन कॉलर पहनना पड़ता। और तब स्कूल भी आज से ज़्यादा बेमज़ा और ज़ालिम थे। लेकिन खाने-पीने की पूरी ऐश थी और टॉफियों और रसभरी गोलियों की तो मैं बात ही नहीं करूँगा कि वो कितनी सस्ती और मज़ेदार थीं क्योंकि फिज़ूल में तुम्हारे मुँह में पानी आ जायेगा।
उन दिनों ही लंदन में एक लड़की रहती थी जिसका नाम था पॉली प्लमर। वह जिस गली में रहती थी वहीं सभी घरों को छतें और दीवारें एक दूसरे से जुड़ी हुई थीं।

एक सुबह जब वह घर के पीछे वाले बगीचे में थी तो दीवारे की दूसरी ओर से एक लड़के ने झाँका। पॉली काफी हैरान हो गयी क्योंकि उस घर में बच्चे कभी थे ही नहीं; सिर्फ बूढ़े मिस्टर कैटरले और उनकी बहन मिस कैटरले थे। और उन दोनों में से किसी की भी शादी नहीं हुई थी। तो अब पॉली ने काफी हैरानी से सिर उठाकर देखा। इस अजीब लड़के का चेहरा काफी मैला था। ऐसे कि जैसे पहले मिट्टी में हाथ मले हों, फिर आँसू भर-भर कर रोया हो और फिर उन मैले हाथों से चेहरा पोंछ लिया हो। वास्तव में उसने कुछ ऐसा ही किया था।
‘‘हैलों,’’ पॉली ने कहा।
‘‘हैलो,’’लड़का बोला। ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’
‘‘पॉली। और तुम्हारा ?’’
‘‘डिगोरी।’’
‘‘अरे, कैसा अजीब नाम है !’’ पॉली कह उठी।
‘‘पॉली जितना अजीब तो नहीं है,’’ डिगोरी ने वापिस टिकाया।
‘‘हाँ है,’’ पॉली पलट कर बोली।
‘‘नहीं, बिलकुल नहीं,’’ डिगोरी अड़ गया।
‘‘और कुछ नहीं तो मैं मुँह तो धोती हूँ,’’ पॉली बोली, ‘‘जो तुम्हें करना चाहिए; खास तौर पर जब...’’ और वह चुप हो गई। वह कहने वाली थी, ‘‘जब तुम रो चुके हो,’’ लेकिन फिर उसने सोचा कि यह बात चुभ सकती है।
‘‘अच्छा, तो मैं रो ही चुका हूँ,’’ डिगोरी थोड़ी ऊँची आवाज़ में बोला। वह इतना दु:खी था कि उसे किसी के जानने से अब कोई फ़र्क नही पड़ता था। ‘‘और तुम भी रोती,’’ वह बोलता गया, ‘‘यदि अपने गाँव की हवा, अपना घोड़ा और घर के पीछे बगीचे से बहती नदी छोड़कर तुम्हें इस बदनुमा कोठरी में रहने को ले आया जाता।’’
‘‘लंदन कोई कोठरी नहीं है,’’ पॉली ने झुंझला कर कहा। लेकिन लड़का इतना दुखी था कि वह पॉली की बात को सुने बिना बोलता जा रहा था: ‘‘और यदि तुम्हारे पापा इण्डिया गये हुए हों, और तुम्हें एक ऐसे अंकल और आंटी के पास रहना पड़े जो पागल हों। वे तुम्हारी माँ की देखभाल कर रहे हो, और यदि तुम्हारी पागल माँ बीमार हो और जल्द ही मरने वाली हो।’’ और फिर उसका चेहरा अजीब हो उठा जैसे वह अपनी रुलाई रोक रहा हो।

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